दूर गगन की उस नगरी में काले बादल शोर मचाते आँख-मिचौली खेल रहे थे और चमन के वीराने में ख़ुद-रौ पौदे पीले बदन में सर को छुपाए काँप रहे थे ऐसे में ये मैं ने देखा सुर्ख़ गुलाब का नन्हा पौदा वीराने से झाँक रहा था उस की आँखों से बादल को ताक रहा था बादल अपनी आँख-मिचौली भूल गए थे चमन के वीराने में वर्षा घुंघरू बाँध रही थी ख़ुद-रौ पौदों की आँखों से आशा बाहर झाँक रही थी