एक मुसाफ़िर से By Nazm << धब्बा इरफ़ाँ-गज़ीदगी >> थका सूरज उजड़ती शब के पहलू में पनाहें ढूँढता है ख़ेमा-ए-जाँ में सफ़र लम्हा तनाबें खोलता है जुदाई रास्ता रोके खड़ी है उदासी साहिलों पर रेत की सूरत बिछी है सफ़र आग़ाज़ होने में अभी कुछ वक़्त बाक़ी है अभी मत बादबाँ खोलो ज़रा आराम कर लो Share on: