रफ़्ता रफ़्ता सब आवाज़ें जो दिल के अंदर हैं और बाहर इक ऐसे सकते में खो जाएँगी जिस का मफ़्हूम अभी तक किसी इशाअत-घर के हर्फ़ों में ढला नहीं है आसार-ए-क़दीमा के माहिर मदफ़ून पुराने शहर के अंदर बाहर से खोद चुके हैं लेकिन उस का मफ़्हूम अभी तक किसी इमारत की शाह-गर्दिश की मेहराबों में और किसी चार आईने के रिसते घाव में मिला नहीं है जिस को इस का राज़ मिले वो हस्ब-ज़ेल पते पर पहुँचा दे: 'अनीस-नागी', लाहौर