एक सच By Nazm << एक सवाल एक मुश्तरका नज़्म >> ख़्वातीन के आलमी दिन पर मैं ने अपनी बेटी को अपनी ताज़ा नज़्म सुना कर दाद-तलब नज़रों से देखा उस पल उस की आँखें ऐसी तंज़ भरी मुस्कान लिए थीं जैसे मुझ से कहती हों माँ तुम कितनी झूटी हो Share on: