अपने शहसवारों को क़त्ल करने वालों से ख़ूँ-बहा तलब करना वारिसों पे वाजिब था क़ातिलों पे वाजिब था ख़ूँ-बहा अदा करना वाजिबात की तकमील मुंसिफ़ों पे वाजिब थी मुंसिफ़ों की निगरानी क़ुदसियों पे वाजिब थी वक़्त की अदालत में एक सम्त मसनद थी एक सम्त ख़ंजर था ताज-ए-ज़र-निगार इक सम्त एक सम्त लश्कर था इक तरफ़ मुक़द्दर था ताइफ़े पुकार उठ्ठे ताज-ओ-तख़्त ज़िंदाबाद साज़-ओ-रख़्त ज़िंदाबाद साज़-ओ-रख़्त ज़िंदाबाद ख़ल्क़ हम से कहती है सारा माजरा लिक्खें किस ने किस तरह पाया अपना ख़ूँ-बहा लिक्खें चश्म-ए-नम से शर्मिंदा हम क़लम से शर्मिंदा सोचते हैं क्या लिक्खें