क़ुर्बतों के फ़ासले जो थे वो कम नहीं हुए दिलों में हैं जो रंजिशें वो बरस-हा-बरस से हैं उसी तरह से मौजज़न मोहब्बतों की डालियाँ कभी की ख़ुश्क हो चुकीं मुनाफ़िक़त की चादरें दिलों पे हैं चढ़ी हुईं ये उल्फ़तों की रहगुज़र है सूनी आज किस क़दर हैं साथ सब ब-ज़ाहिर अब मगर वो प्यार की शम्अ' जो रौशनी का थी सबब वो बुझ चुकी वो गुल हुई है रब से मेरी ये दुआ ऐ मेरे रब मिरे ख़ुदा मोहब्बतों की डालियाँ हों फिर से सब हरी-भरी वो उल्फ़तों की रहगुज़र बने सभी की रहगुज़र जले वो प्यार की शम्अ' हो चार सू चमक-दमक ऐ मेरे रब ये चाहतों की दूरियाँ मुनाफ़िक़त की चादरें ये क़ुर्बतों के फ़ासले समेट ले मिरे ख़ुदा समेट ले मिरे ख़ुदा