नौजवान कौन है तो आया है किस नगरी से नाम क्या है तिरा क्या काम है आख़िर मुझ से मैं समझता हूँ कि इस वक़्त मुनासिब नहीं आना तेरा तू ने किस ज़ो'म में इस वक़्त पुकारा है मुझे तू ने क्या सोच के दस्तक दी है आज की शब मिरे सोए हुए दरवाज़े पर नौजवाँ कौन है तू नौजवाँ जो भी है तू फ़ैसला सोच समझ कर ये क्या है मैं ने लाख दस्तक कोई दे आज की रात घर का दरवाज़ा किसी पर भी न अब खोलूँगा चाहे मेहमान हो या कोई हवा का झोंका सच तो ये है कि मुझे अब तो उन ताज़ा हवाओं से भी डर लगता है नौजवाँ ठीक सही तो मुझे जानता है मैं भी तुझे जानता हूँ थी मुलाक़ात तिरी और मिरी आज से बरसों पहले लेकिन अब उस का ये मतलब तो नहीं तू समझ कर मुझे हम-उम्र अपना जब भी चाहे मिरे दरवाज़े पे दे कर दस्तक रतजगे मिल के मनाने के लिए मुझ को बुलाने आ जाए जा मियाँ और कहीं मुझ को परेशान न कर