फ़रार By Nazm << गिध इक नन्हा सा घर >> आज की शब जबकि हर-सू होंगी छाई हुई ख़ामुशी की गुफाएँ मैं धीरे से उठ कर बुध की मानिंद चला जाऊँगा घने पुर-सुकूँ जंगलों की तरफ़ कि हर रोज़ मेरे घर की तबाही मुझे काटने दौड़ती है तन्हा ओ बे-आसरा देख कर Share on: