लिए हाथ में एक छोटा स्पीकर जनाब मुशर्रफ़ ये फ़रमा रहे थे मिरे भाइयो और मेरे बुज़ुर्गो मुझे इल्म है कि तबाही मचाई बड़ी ज़लज़ले ने मसाइब तुम्हारे सभी जानता हूँ तुम्हारे दुखों पे मेरी रात की नींद उड़ गई है जनाब मुशर्रफ़ ख़िताबत के जौहर दिखा ही रहे थे कि मजमा' से इक शख़्स उठा मुख़ातब किया उस ने आली क़द्र को हमारी मदद को हैं जितने भी अंग्रेज़ आए ख़ुदा की क़सम वो फ़रिश्तों से कमतर नहीं हैं सिपाही भी जितने हैं पाक आर्मी के हैं वो भी ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत के पैकर मगर जनाब-ए-मोहतरम ये हक़ीक़त है सुन लें ब-ज़ाहिर रज़ाकार हैं जो सिविल के सभी तो नहीं पर हैं अक्सर लुटेरे ये भेड़ों के मल्बूस में भेड़िये हैं हमारी ग़रीबी को पहचान कर ये यहाँ के मवेशी बड़े सस्ते दामों लिए जा रहे हैं कुदालें चलाते हैं मलबे के अंदर कि पाएँ कोई क़ीमती शय किसी नौ-बियाहता दुल्हन का ज़ेवर किसी बाप की उम्र-भर की कमाई ये सच है नहीं ढूँडते ये हमारे प्यारे अज़ीज़ों की लाशें फ़क़त ढूँडते हैं ये मतलब की चीज़ें ख़ुदा के लिए हम को इन से बचाएँ ये गिध हैं मबादा हमें नोच खाएँ जनाब मुशर्रफ़ ने बिपता सुनी तो कड़क कर ये बोले अगर आदमी ऐसा मनहूस पकड़ो तो फ़ौरन उसे तुम वहीं ढेर कर दो इजाज़त है तुम को ये मेरी तरफ़ से मिले गर कहीं दुश्मन-ए-क़ौम ऐसा तो उस को उसी दम जहन्नुम का रस्ता दिखाओ जनाब-ए-मुशर्रफ़ का फ़रमान सुन कर जो मजमा' से उट्ठा था मर्द-ए-क़लंदर ख़जिल हो के बोला सदा-ए-ख़फ़ी से अगर हम में होती इतनी ही हिम्मत तो हम आप से ऐसे फ़रियाद करते