इतने बड़े निज़ाम में सिर्फ़ इक मेरी ही नेकी से क्या होता है मैं तो इस से ज़ियादा कर ही क्या सकता हूँ मेज़ पर अपनी सारी दुनिया काग़ज़ और क़लम और टूटी फूटी नज़्में सारी चीज़ें बड़े क़रीने से रख दी हैं दिल में भरी हुई हैं इतनी अच्छी अच्छी बातें इन बातों का ध्यान आता है तो ये साँस बड़ी ही बेश-बहा लगती है मुझ को भी तो कैसी कैसी बातों से राहत मिलती है मुझ को इस राहत में सादिक़ पा कर सारे झूट मिरी तस्दीक़ को आ जाते हैं एक अगर मैं सच्चा होता मेरी इस दुनिया में जितने क़रीने सजे हुए हैं उन की जगह बे-तरतीबी से पड़े हुए कुछ टुकड़े होते मेरे जिस्म के टुकड़े काले झूट के इस चलते आरे के नीचे इतने बड़े निज़ाम से मेरी इक नेकी टकरा सकती थी अगर इक मैं ही सच्चा होता