फ़ातिहा By Nazm << तू ने पूछा है मिरे दोस्त! महबूबा के लिए आख़िरी नज़्... >> अगर क़ब्रिस्तान में अलग अलग कत्बे न हों तो हर क़ब्र में एक ही ग़म सोया हुआ रहता है किसी माँ का बेटा किसी भाई की बहन किसी आशिक़ की महबूबा तुम! किसी क़ब्र पर भी फ़ातिहा पढ़ के चले जाओ Share on: