मशवरा By Nazm << मज़दूर गिध >> झिलमिल करते जिस्मों की जानिब मत देखो आशाओं की भट्टी हैं ये महरूमी के अंगारे हैं छूओगे अपनी नज़रों से गर उन ज़हरीली बेलों को आँखें पत्थर हो जाएँगी और फ़ज़ा में महरूमी के शो'ले हर-दम रक़्स करेंगे Share on: