मुझ को भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे अक्सर तुझ को देखा है कि ताना बुनते जब कोई तागा टूट गया या ख़त्म हुआ फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उस में आगे बुनने लगते हो तेरे इस ताने में लेकिन इक भी गाँठ गिरह बुन्तर की देख नहीं सकता है कोई मैं ने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता लेकिन उस की सारी गिरहें साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे!