मेरी ख़ातिर जो तू गुलदस्ता-ए-तर लाया है आशिक़-ए-ज़ार ग़रीबों का जिगर लाया है आह ना-कर्दा-गुनह ग़ुंचा को बर्बाद किया तोड़ा ग़ुंचे को तो बुलबुल को भी नाशाद किया वाए बेदर्दी कि ग़ुंचा से वतन छूट गया खोया ग़ुंचे को तो बुलबुल का भी दिल टूट गया ले के गुलदस्ता तिरे रू-ब-रू गर आया मैं तेरी ज़ीनत को ये गुलदस्ता नहीं लाया मैं माह-रू तख़्तों में गुल हुस्न पे इतराता था और ख़ातिर में हसीनों को नहीं लाता था नाज़िश-ए-हुस्न के मुजरिम को पकड़ लाया हूँ पेश करने को तिरे गुल को जकड़ लाया हूँ