बस एक छोटी सी बहस पर ही चले गए हो किनारा कर के बहुत से दा'वे किए थे तुम ने मैं पहले दिन से ही जानता था तमाम दा'वे हैं वक़्ती जज़्बों के ज़ेर-ए-साया कभी कहा तो नहीं ये लेकिन मैं जानता था तुम्हें मोहब्बत नहीं है मुझ से फ़क़त गुमाँ है मैं मानता हूँ कि प्यार आता था मुझ पे तुम को सो प्यार आने को प्यार होना समझ रहे थे मगर जो आता है जान मेरी तो उस का जाना भी तय ही समझो बस एक छोटी सी बहस पर ही चले गए हो