गुरेज़ By Nazm << अजनबी शहर के नसरी नज़्म >> किस क़दर अजीब है देखता नहीं मुझ को बोलता नहीं मुझ से मैं जो बात करती हूँ अन-सुनी सी करता है दूर दूर रहता है जाने किस से डरता है बे-ख़बर है वो लेकिन यूँ गुरेज़ करने से रास्ते बदलने से कौन दिल से निकला है Share on: