सजे तो कैसे सजे क़त्ल-ए-आम का मेला किसे लुभाएगा मेरे लहू का वावैला मिरे नज़ार बदन में लहू ही कितना है चराग़ हो कोई रौशन न कोई जाम भरे न इस से आग ही भड़के न उस से प्यास बुझे मिरे फ़िगार बदन में लहू ही कितना है मगर वो ज़हर-ए-हलाहल भरा है नस नस में जिसे भी छेदो हर इक बूँद क़हर-ए-अफ़ई है हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है हज़र करो मिरे तन से ये सम का दरिया है हज़र करो कि मिरा तन वो चोब-ए-सहरा है जिसे जलाओ तो सेहन-ए-चमन में दहकेंगे बजाए-सर्व-ओ-समन मेरी हड्डियों के बबूल इसे बिखेरा तो दश्त-ओ-दमन में बिखरेगी बजाए-मुश्क-ए-सबा मेरी जान-ए-ज़ार की धूल हज़र करो कि मिरा दिल लहू का प्यासा है