धर्म-ओ-जाती-वाद के झगड़े मिटा कर एक बार आओ हम मिल कर मोहब्बत से गले सब से मिलें बुग़्ज़-ओ-कीना और हसद शैतानियत की देन है हम उसे होली की अग्नी में जला कर फूँक दें है ये रंगा-रंग का त्यौहार हम सब के लिए ताकि रौशन हों हर इक दिल में मोहब्बत के दिए होली सच्चाई का 'अंजुम' देने आई है पयाम स्मरण करता रहे प्रहलाद का हर कोई नाम