उर्दू हमारे देश की शीरीं ज़बान है तहज़ीब की है वज़्अ शराफ़त की जान है तालीम-ओ-तर्बियत में अहम इस का है मक़ाम शेर-ओ-सुख़न की रूह अदब की ये जान है छोड़ा है जब से इस को तलफ़्फ़ुज़ बिगड़ गया ये हर ज़बाँ का जुज़्व-ए-बयाँ और शान है पैदा हुई ये हिन्द में परवान भी चढ़ी फिर किस लिए कहो ये विदेशी ज़बान है मक़्बूल-ए-आम भी है ये हर-दिल-अज़ीज़ भी सच बात तो ये है कि ये सब की ज़बान है हम इस के ज़ौक़ से हुए अफ़्सोस मुन्हरिफ़ आज़ादी की तहरीक की उर्दू ही जान है आज़ाद हिन्द में न मिला इस को कुछ मक़ाम ये मादर-ए-वतन के शहीदों की जान है हालाँकि रोज़गार का ज़रीया नहीं रही उर्दू पढ़ो पढ़ाओ ये अपनी ज़बान है