हम सब कितने तन्हा हैं अपने अंदर अपना सब दुख-दर्द समेटे अपने चेहरों पर नक़ली मुस्कान सजाए तू भी मैं भी तन्हा हैं और आते-जाते लम्हों को देख रहे हैं यूँ जैसे उन से अपना गहरा रिश्ता है कितने पागल हैं हम दोनों मैं भी तू भी उन आते-जाते लम्हों को अपना समझे बैठे हैं ये कब अपने हो सकते हैं आँखें मूँदे बढ़ते जाना सजल सुहाने सुंदर सपने पलकों पलकों चुनते जाना उन की अपनी आदत है कैसे मूरख हैं हम दोनों ज़हर ग़मों का पीते हैं तू भी मैं भी जीते हैं