क़द्र By बाल कविता, Nazm << पानी ना-माक़ूल >> लाओ तो बेंत ज़रा इस की मरम्मत कर दूँ ग़ैर-हाज़िर रहा करता है बहुत दीवाना सुन के शागिर्द ने उस्ताद से ये अर्ज़ किया क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना Share on: