एक उमंग से तनी हुई इक पुर-असरार गली पत्ती पत्ती आग लिए जाती है... ये सरकश ख़ून-फ़रोश अपने ब्रश की जुम्बिश से मैली सुब्ह में सुर्ख़ रंग भर देगी... आज नुमू के नीले ज़हर से भरी हुई बैठी है... ओस में तर कोई बे-घर तितली नींद-पेड़ की ख़्वाब-शाख़ पर पीले धानी अंदेशों की धनक पहन के सोती है.... इस कोहरे में वो जादू-गर बीर-बहूटी किरन दिखाई दे जो उस के मजरूह परों से शबनम की ज़ंजीर तोड़ के उसे रिहाई दे नर्म घास में हवा उड़े जो मिट्टी में बंद महक अपने रेज़र से काट काट के धरती से आज़ाद करे मंज़रों का सैद में एक अपने कैमरे में क़ैद में