जो शोर दिन का थमा ब-मुश्किल उदास रातों की चाँदनी में सितारे पिछली पहर ये बोले सँभल के अपना उठाओ ख़ेमा कि दश्त-ए-ग़ुर्बत में मुंतज़िर हैं हज़ारों ख़ूँ-ख़ार लाव-लश्कर लिए हलाकत के साज़-ओ-सामाँ हैं घात में बैठे कारवाँ के जो शब को गुज़रे तो मार डालें जो दिन को गुज़रे तो रौंद डालें नई उमंगों की रौशनी में ग़ुरूर-ए-अज़्म-ए-जवान को ले कर हुसूल-ए-मंज़िल की आरज़ू में चराग़-ए-उल्फ़त की लौ बढ़ाए हिसार-ए-सहरा उबूर करके जो कारवान-ए-हयात पहुँचा फ़ज़ा में झमका वो नूर बन कर उफ़ुक़ पे उभरा हिलाल बन कर हसीन रातों की चाँदनी में चमक उठा है दमक उठा है हज़ारों ख़ूँ-ख़ार लाव-लश्कर लिए हलाकत के साज़-ओ-सामाँ जो मुंतज़िर थे वो सो गए हैं वो राह-ए-मंज़िल को खो गए हैं ये कारवान-ए-हयात अपना रवाँ-दवाँ है रवाँ-दवाँ है