ऐ ख़ुदा इन मुज़्तरिब मौजों को है किस की तलाश किस के क़दमों में ये सर रखने को यूँ बे-ताब हैं कौन सी हस्ती इन्हें दीवाना रखती दम-ब-दम है तड़प किस की दिलों में किस लिए सीमाब हैं वो विवेकानन्द वो फ़िक्र-ओ-अमल का बादशाह अज़्म हो उस का अगर बहरैन भी पायाब हैं