वादी-ए-कश्मीर है या चश्मा-ए-क़ुदरत है ये गोशे गोशे में जो बिखरी बे-बहा दौलत है ये जंगलों के बीच में आब-ए-रवाँ कौसर-सिफ़त ऐ ख़ुदा क्या इस ज़मीं पर दूसरी जन्नत है ये बर्फ़ की दस्तार बाँधे सफ़-ब-सफ़ पर्बत यहाँ करते हैं हम्द-ओ-सना अल्लाह की क़ुदरत है ये ख़ुशनुमा फूलों में भी रंगों का इक सैलाब है चार-सू दिलकश फ़ज़ाएँ इस की बस फ़ितरत है ये ये हमारी ज़िंदगी है हम हैं इस के पासबाँ मुख़्तसर इतना समझिए मुल्क की इज़्ज़त है ये