फिर यूँ होगा ज़र्द लबों पर जम जाएँगे लफ़्ज़ ये साँसें थम जाएँगी पथराई आँखों में कोई ख़्वाब न होगा और मिरे बे-जान बदन को धरती अपनी गोद में चुपके से रख लेगी मैं न रहूँगा सिर्फ़ ख़मोशी रह जाएगी लेकिन मेरे गीत हवाएँ याद रखेंगी मेरे क़दमों की आहट होंटों की जुम्बिश लम्स इन हाथों का ज़र्रे महसूस करेंगे ढलती शब में फूलों पर जब शबनम की बूँदें टपकेंगी शाख़-ए-गुल झुक कर कलियों का बोसा लेगी पत्तों में सरगोशी होगी नाज़ुक ठंडी घास को छू कर मस्त हवा जब बहती होगी ख़ामोशी आवाज़ करेगी