पुरानी बात है लेकिन ये अनहोनी सी लगती है हुआ इक बार यूँ उन के बुज़ुर्गों ने ज़मीं में कुछ नहीं बोया फ़क़त अंगूर की बेलें उगाईं और मिट्टी के घड़ों में मय बनाई रात जब आई उन के बदन नंगे थे पहली बार मय का ज़ाइक़ा होंटों ने चक्खा था हिकायत है बरहना देख कर अपने बुज़ुर्गों को जवाँ बेटों ने आँखें बंद कर लीं और मिट्टी के घड़ों को तोड़ डाला सुब्ह से पहले ज़मीं हमवार की और उस में ऐसे बीज बोए जिन के फल पौदे कभी उन के बुज़ुर्गों के न काम आए