एक अजीब ख़्वाहिश है इस ज़मीं के कोने में सिर्फ़ मह-जबीनों की सब की सब हसीनों की अपनी एक बस्ती हो ज़िंदगी जहाँ हर पल खिलखिला के हँसती हो रंग-ओ-नूर की बारिश हर घड़ी बरसती हो सब ग़ज़ाल-नैनों में शोख़ सी शरारत हो इन की जुम्बिश-ए-लब से ज़िंदगी इबारत हो ख़ुशियों का झमेला हो पलकों पे सितारे हों रौशनी का रेला हो ख़ुशबुओं का मेला हो और मह-जबीनों की इस हसीन बस्ती में एक सिर्फ़ मेरा ही चूड़ियों का ठेला हो