ख़याल आता है जम्हूरियत के ख़्वाबों का सुनहरी ख़्वाब जो नींदों को ताज़गी बख़्शें यक़ीं के नूर से ता'बीर जिन की मिल जाए कि आधी रात को कोई न उठ के घबराए खुली सड़क पे ये आदम-गज़ीदा लोग न हों किसी भी सम्त से उभरे न तीरगी कोई हयात-ओ-मौत में पैहम न कश्मकश हो कोई ख़याल आता है बिछाएँ दूर तलक ज़ीस्त के उजालों को हँसी के फूल खिलाएँ कि ज़िंदगी की नज़ाकत हो तितलियों में जहाँ जिन्हें पकड़ने ये बच्चे भी दौड़ते होंगे चमन चमन में बहारों में गुल-'इज़ारों में बिछाए कोई न बारूद सब्ज़ा-ज़ारों में कि सारी तितलियाँ हिजरत ही कर न जाएँ कहीं बजाए उन के ये दहशत न फैलने पाए हँसी झुलसने न पाए न रौशनी जाए ख़याल आता है मिठास दूध की होंटों के नर्म गोशों में ख़ुशी खिलाए ख़ुदाई भी माँ के आँचल में हँसी कली में हो तो गुफ़्तुगू हो फूलों में भटक न जाएँ ये साँसें बक़ा की राहों में यहाँ न मौत का साया हो साएबानों में हर एक घर में सुकूँ हो सुकून-ए-पैहम हो मकीन ख़ुश हों मकानों में फूल आँगन में कि ज़ीस्त पाने में दिल को ख़ुशी मयस्सर हो ख़याल आता है पनाह सब को मिलेगी हिसार-ए-शहर में अब गली गली में मोहब्बत की बोलियाँ होंगी हर एक मोड़ पे चाहत के मोर्चे होंगे मिठास शहद की होगी हर एक सोहबत में ख़याल आता है ये शहर मेरा कभी शहर-ए-दोस्ताँ होता यक़ीं के नाम से उठते सहर जो होती सहर हर एक साँस में नग़्मों का ही गुमाँ होता ग़ुरूब होते ही दिन की भी इक दुआ होगी ख़ुदा करे कि मिरे शहर के ख़ुदाओं को सलामती का कोई इस्म याद आ जाए