सुब्ह होने लगी है मगर अपने बिस्तर में वो बे-ख़बर अब भी बे-सुध पड़ी है उसे क्या ख़बर है कि दो लाख सालों से चलती हुई ऐंडरोमेडा के कुछ सूरजों की शुआएँ ज़मीं पर पहुँच कर हमारी शुआ'ओं में शामिल हुई हैं तो इस सुब्ह का चेहरा रौशन हुआ है ये दो लाख सालों का लम्बा सफ़र जिस में हम सेपीएन्ज़ जंगलों के अँधेरों में बढ़ते हुए अपने कज़नों की क़िस्मत के रब बन गए उन से इतना लड़े उन की नापैदगी का सबब बन गए इतने सालों में हम ग़ार से झोंपड़ी झोंपड़ी से क़बीलों की सूरत बटे और क़बीलों से शहरों में ढलने लगे हैं ये दो लाख सालों से निकली हुई रौशनी अपने सूरज में आ कर मिली है तो दुनिया की ऐन उस जगह पर जहाँ इस का घर है वहाँ सुब्ह बनने लगी है ज़मीं पर किसी दिन की पहली घड़ी है ज़मीं घूम कर अपने बाबा की जानिब मुड़ी है मगर अपने बिस्तर में वो बे-ख़बर अब भी बे-सुध पड़ी है