कुछ रोज़ अभी हम ज़िंदा हैं By Nazm << तसल्ली उजाले बाँट देना तुम >> कुछ रोज़ अभी हम ज़िंदा हैं कुछ रोज़ उसूलों की ख़ातिर हम दुनिया से लड़ सकते हैं फिर वक़्त के साथ हर शय में तब्दीली आ जाती है पत्थर पर सब्ज़ा उगता है बालों में चाँदी पकती है ग़ुस्सा कम हो जाता है बस्ती के मोहज़्ज़ब लोगों में हम संजीदा कहलाते हैं Share on: