सफ़र पे जब भी निकलो तुम दिया जब भी जलाओ तुम हमेशा मन में रक्खो तुम दिए की लौ बढ़ाना है उजाला बाँट देना है सफ़र में जब बढ़ोगे तुम यक़ीनन जान लोगे तुम उजाले बाँट देने से सफ़र में साथ देने से मोहब्बत साथ रहने से कभी भी कम नहीं होती मसाफ़त मन नहीं छूती नई किरनें उभरती हैं नई राहें बुलाती हैं दिए की लौ बढ़ाना तुम मोहब्बत बाँट देना तुम उजाले बाँट देना तुम