मैं सोचती हूँ कि ज़िंदगी की तमाम ख़ुशियाँ तमाम यादें तमाम ख़्वाब अपने रौशनी के तुम्हारे क़दमों में नज़्र कर दूँ मुझे ख़बर है ये ख़्वाब मेरे पुरानी क़ब्रों के टूटे-फूटे शिकस्ता कत्बों की तरह बे-आब हो चुके हैं मैं जानती हूँ ये ख़्वाब मेरे हिसाब रक्खूँ तो ज़िंदगी-भर की दास्ताँ हैं मगर ये यादों के ख़ुश्क पत्ते लिखा है बस जिन पे एक ही नाम हज़ारों सदियों हज़ारों बरसों से एक ही नाम जो पढ़ सको तो मुझे बता दो कि मैं भी ख़्वाबों की इस कहानी को कोई अच्छा सा नाम दे दूँ