दिल-ए-अफ़सुर्दा की आरज़ूओं के रमीदा लम्हो तुम्हारी बे-कैफ़ी के क़ाफ़िले रफ़्ता रफ़्ता हरीम-ए-जाँ से गुज़र रहे हैं और तुम्हें पता है कि आसमाँ की बुलंदियों पे पहुँच के इंसान मुर्दा हो चुका है तो फिर कशीद-ए-जाँ से निकाल कर कोई हसीन मंज़र क़तरा क़तरा हयात की तिश्नगी के इस कासा-ए-तही में डालो ताकि सबात की ख़ातिर भटके हुए बे-रूह जिस्म को कुछ क़रार आ जाए