महरूमी By Nazm << मुंतख़ब-ए-रोज़गार 'अब... लम्हों का कर्ब >> जैसे तारीकी में साए खो जाते हैं इसी तरह मुझे यक़ीन है कि तुम मेरे नज़दीक और बहुत नज़दीक मौजूद हो लेकिन दिखाई नहीं देते मैं इस तारीक माहौल में परछाइयों को छूता हूँ लेकिन इस अमल में मेरे हाथ आता है सिर्फ़ ठंडी राख का ढेर Share on: