लज़्ज़त-ए-तन्हाई By Nazm << माँ तिनके का सहारा >> दौर बदला तो क़द्रें भी बदलीं चाहतें ख़्वाहिशें आरज़ूएँ भी बदलीं कल जो तकलीफ़-ओ-ग़म का था बाइ'स आज वज्ह-ए-सुकूँ बन गया है कल जो तन्हाई से डर रहा था आज ख़ुद ही उसे ढूँढता है Share on: