मैं ने मुस्तक़बिल की ख़ातिर By Nazm << मिरे बंद कमरे की तन्हाइयो... मैं ने जिन लम्हों के बदन ... >> मैं ने मुस्तक़बिल की ख़ातिर हाल के रंगीं लम्हों की ख़ुश-रंग कमाँ से माज़ी के सीने पर जितने तीर चलाए आँख खुली तो देखा वो सब मुस्तक़बिल के सीने में पैवस्त हुए हैं Share on: