नमी दे कर जो मिट्टी को मुसलसल गूँधते हो तुम बताओ क्या बनाओगे कोई कूज़ा कोई मूरत या फिर महबूब की सूरत सुख़नवर हूँ कहो तो मशवरा इक दूँ ये घाटे का ही सौदा है यहाँ मिट्टी की मूरत की अगर आँखें बनाओगे तुम्हें आँखें दिखाएगी तराशोगे ज़बान उस की तो तुरशी झेल पाओगे अगर जो दिल बनाया तो हज़ारों ख़्वाहिशें बन कर तुम्हें तुम से ही मांगेगी अता-ए-ख़िलअत-ए-अह्मर उसे ख़ुद-सर बना देगी वहाँ अपनी मोहब्बत का जो नादिर ताज पहनाया ख़ुदा ख़ुद को ही समझेगी अभी भी वक़्त है मानो इरादा मुल्तवी कर दो इसे मिट्टी ही रहने दो इसे मिट्टी ही रहने दो