भीगे हुए मौसम का अंदाज़ निराला हो यख़-बस्ता से हाथों में कॉफ़ी का पियाला हो कमरे की खुली खिड़की से बाहर का नज़ारा हो फूलों की महक छुप कर कमरे में उतर आए एहसास से ख़ुशबू के इक ताज़गी भर जाए माहौल हो रूमानी जज़्बों में रवानी हो ताज़ा सा तिरा चेहरा यूँ सामने आ जाए ख़ामोश लबों पर भी रंगीन कहानी हो फीका सा हरा झोंका टकराए जो शीशे से मासूम सा इक नग़्मा कानों में समा जाए हाथों में क़लम ले कर जब डाइरी मैं खोलूँ फिर लफ़्ज़ों का जल-थल हो हो जाए ग़ज़ल पूरी