इक दिन जब हम दम तोड़ेंगे तो ताबूत में साथ हमारे क्या जाएगा काश कभी ये सोचा होता रंग-ओ-बू की दुनिया में क्या ज़िंदा रहेगा कोई हमेशा दिल की नगरी में हम उतरें और ज़रा ये सोचें भाई अपने अंदर ईमाँ की दौलत रख कर भी कितने मुफ़्लिस हैं हम आगे की मुश्किल घाटी को फिर कैसे हम पार करेंगे आगे की मंज़िल के लिए भी रख़्त-ए-सफ़र कुछ बाँधें जल्दी वक़्त बहुत ही कम है भाई पीछे मुड़ कर ये तो देखें मौत हमारे तआ'क़ुब में है