मेरे आँगन में पहली ख़ुशी बन कर तुम आई हो जैसे तपते हुए सहरा में बारिश की बूँदें गिरती हों तुम ने मुझे कितना बुलंद मर्तबा दिया है बिल्कुल परियों जैसी लगती हो तुम तुम्हारे मुँह से माँ सुन कर एक अनोखा एहसास होता है तुम्हारे नन्हे नन्हे हाथों का लम्स एक अजीब सी तवानाई बख़्शता है तुम मेरी ज़िंदगी की पहली ख़ुशी बन कर आई हो तुम मेरा शजर-ए-साया-दार हो