कितनी ने'मतों से नवाज़ा है मुझे ख़ुदाए इज़्ज़-ओ-जल ने ये पुर-कशिश सा बदन जिस पे शाइ'र पूरी बयाज़ लिख दे ये चाँद की किरनों जैसा उजला उजला रूप ये सोने जैसे बाल ये गुलाब जैसे नाज़ुक होंट ये सियाह घनेरी ज़ुल्फ़ें जिन पे रात का गुमाँ होता है इन आँखों में समुंदर की गहराई है लहजे में फूलों सी नर्मी है मैं लफ़्ज़ों को नए मा'नी पहना देती हूँ बातों को ख़ूबसूरत अंदाज़ में सजा देती हूँ किसी भी ग़म-ज़दा के दुख पर तड़प जाती हूँ मैं वो शबनम का क़तरा हूँ जो सुलगते वजूद को ठंडक देती है मैं वो सागर हूँ जो सारे दुखों को दिल में छुपा लेती है वाक़ई देने वाले ने बहुत कुछ दिया है मुझे एक मुख़्लिस और वफ़ादार साथी जो मेरी एक मुस्कुराहट से जी उठता है और नन्हा मुन्ना वजूद जिस की आँखों के दरीचों से प्यार उमँडता रहता है सब कुछ तो दिया है ख़ुदा ने मुझे मगर इन सब के बावजूद कभी कभी तुम्हारा ख़याल आ ही जाता है