मैं उसे जीवन की आख़िरी सरहद पर छोड़ने गया था जानते हो जीवन की आख़िरी सरहद पार जो भी चला जाए वापस नहीं आता मैं उसे छोड़ कर ख़ाली हाथ लौट आया हूँ क्या पता वहाँ जा कर उसे मेरी याद आती भी हो कि नहीं बीते जीवन के सुनहरी पल उसे बुलाते हों या नहीं क्या ख़बर वो भी मेरी तरह नए जीवन के कामों में उलझ बैठा हो लेकिन कभी-कभार तो मेरी तरह वो भी मुझे याद करता होगा उस ने कहा था जाते जाते मुझे बुला कर मेरे कान में सरगोशी में हम फिर मिलेंगे किसी और ही नई दुनिया में किसी और ख़ूबसूरत जीवन में इक बार ज़रूर मिलेंगे मुख़्तलिफ़ से हालात में मुख़्तलिफ़ से ख़द-ओ-ख़ाल के साथ जीवन के किसी नए किरदार में हम फिर मिलेंगे और मैं सोचता हूँ सच ही तो कहता था वो किसी के मर जाने से उस की अहमियत कम नहीं होती मोहब्बत कम नहीं होती बल्कि मोहब्बत तो बस जिस्म छोड़ देती है और जा कर किसी और जिस्म में उतर जाती है कोई और चेहरा कोई और किरदार हू-बहू वही कहानी दोहराता है जो जीवन की आख़िरी सरहद तक साथ चलती है मोहब्बत कब मरती है