कभी मोहब्बत को याद न बनने देना तुम्हें मा'लूम नहीं है मोहब्बत याद बन जाए तो लम्बे घने दरख़्तों की शाख़ों की मानिंद बदन के गिर्द यूँ लिपट जाती हैं कि साँसें रुक रुक कर आती हैं एक लम्हे को यूँ लगता है जैसे ज़िंदगी और मौत के बीच ख़ाना-जंगी में ज़िंदगी हार जाएगी मगर मोहब्बत की सिसकियाँ कुछ देर सहम कर चुप ओढ़ लेती हैं और फिर उस एक लम्हे की मौत कई सदियों पर भारी हो जाती है सुनो बस उस एक लम्हे की स्याही रगों में घुलने से पहले ये जान लो मोहब्बत को कभी याद न बनने देना