मोहब्बत मौसमों की क़ैद से आज़ाद होती है By Nazm << ये रेशमी सा हसीन बंधन ये लम्हा लम्हा बदलती सोचे... >> मोहब्बत मौसमों की क़ैद से आज़ाद होती है न कोई हिज्र का लम्हा इसे मग़्मूम करता है न कोई वस्ल की साअ'त इसे मसरूर करती है ये इक महकार होती है कि जो इख़्लास के पैकर में ढल कर पास रहती है हमेशा साथ रहती है Share on: