रू-ए-महताब की ज़ौ-फ़िशानी लिए सच की परछाइयाँ रक़्स में हैं मगन सोज़-ए-पिन्हाँ लिए जान-ए-उर्यां लिए कहकशाँ कहकशाँ रौशनी के दिए मौजज़न ज़ौ-फ़गन अर्श से फ़र्श तक अज़्म का हाथ में अपने परचम लिए चश्म-ए-बीना अगर है तो तुम देख लो या किसी बंदा-ए-हक़ से तुम पूछ लो क़ल्ब-ए-रौशन अगर है तो ऐ हम-नशीं शब की तारीकियाँ ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म तार-ए-रेशम की सूरत निखर जाएँगे जितने नासूर हैं दिल के भर जाएँगे झूट ख़ुद आग में अपनी जल जाएगा सूरत-ए-ख़ाक हर-सू बिखर जाएगा