धूप के समुंदर में बर्फ़ की सलीबों पर ख़्वाहिशों के तिनकों से एक लफ़्ज़ लिक्खा है लफ़्ज़ जो अमानत है रौशनी की सुब्हों की दर्द के रफ़ीक़ों की फूल फूल शाख़ों की ज़र्द ज़र्द शामों की ना-शनास नामों की लफ़्ज़ जो सदाक़त है अन-कहे सवालों की जागते ख़यालों की रेंगते उजालों की किस तरह समेटेगा मेरी तेरी नस्लों को ख़्वाब के जज़ीरों में आने वाले लम्हों में लफ़्ज़ जो दियानत है लफ़्ज़ जो इबादत है