नई धूप की भीक By Nazm << नक़्श-ए-ना-तमाम खुल जा सिम-सिम >> उजालों को मैं ने ये कहते सुना है कि हम तीरगी के बदन को अपनी किरनों से संगसार कर दें तो भी रात के जितने बेटे हैं सब कल हमें तारीक नामों से बुलवाएँगे और संगसार करने चले आएँगे नई धूप की भीक लेने निकल जाएँगे Share on: