तह-ब-तह दिल की कुदूरत मेरी आँखों में उमँड आई तो कुछ चारा न था चारा-गर की मान ली और मैं ने गर्द-आलूद आँखों को लहू से धो लिया मैं ने गर्द-आलूद आँखों को लहू से धो लिया और अब हर शक्ल-ओ-सूरत आलम-ए-मौजूद की हर एक शय मेरी आँखों के लहू से इस तरह हम-रंग है ख़ुर्शीद का कुंदन लहू महताब की चाँदी लहू सुब्हों का हँसना भी लहू रातों का रोना भी लहू हर शजर मीनार-ए-ख़ूँ हर फूल ख़ूनीं-दीदा है हर नज़र इक तार-ए-ख़ूँ हर अक्स ख़ूँ-बालीदा है मौज-ए-ख़ूँ जब तक रवाँ रहती है उस का सुर्ख़ रंग जज़्बा-ए-शौक़-ए-शहादत दर्द, ग़ैज़ ओ ग़म का रंग और थम जाए तो कजला कर फ़क़त नफ़रत का शब मौत का हर इक रंग के मातम का रंग चारा-गर ऐसा न होने दे कहीं से ला कोई सैलाब-ए-अश्क आब-ए-वुज़ू जिस में धुल जाएँ तो शायद धुल सके मेरी आँखों मेरी गर्द-आलूद आँखों का लहू