तीरगी जाल है और भाला है नूर इक शिकारी है दिन इक शिकारी है रात जग समुंदर है जिस में किनारे से दूर मछलियों की तरह इब्न-ए-आदम की ज़ात जग समुंदर है साहिल पे हैं माही-गीर जाल थामे कोई कोई भाला लिए मेरी बारी कब आएगी क्या जानिए दिन के भाले से मुझ को करेंगे शिकार रात के जाल में या करेंगे असीर?